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Saturday 3 December 2011

आक्रोश


       हाँ ..
              आज तो बरसेगी ही
             मन सुखकर चट्टान और विरान जो हो गया 

       गुबार और घुटन के बादल से 
        आसमान सघन  है  तो बारिश तो होगी ही 
         बूंदें बरसेगी ही ..

      इतना बरसो ..
      मन की मिटटी दलदल हो जाए
       तुम्हारी तीखी धुप भी इसे सुखो न पाय  

परन्तु भय है 
मिटटी, दलदल, बारिश 
और धुप पाकर आक्रोश के बिज पनप न जाए

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