roses
Saturday 3 December 2011
Sunday 7 August 2011
कुछ बदला सा !!
दरकती रही ज़िन्दगी जुड़ने की चाहत में
उगते रहे ये पंख बस उड़ने की चाहत में !
उगते रहे ये पंख बस उड़ने की चाहत में !
पलकें जब भी उठाई अपने ही चेहरे से घबराई
दौडती रही रौशनी में बस अंधेरों से टकराई !
दौडती रही रौशनी में बस अंधेरों से टकराई !
मुस्कुराते कई शब्द ! ख़ामोशी में बदल रहे
भावनाओं के किरदार एकाकीपन में उलझ रहे
भावनाओं के किरदार एकाकीपन में उलझ रहे
मै बैठी रह जाती हूँ, विचार आगे बढ़ जाते हैं
मै कुछ न कह पाती हूँ , मौन सब कह जाते हैं
मै कुछ न कह पाती हूँ , मौन सब कह जाते हैं
उथल पुथल हुई है कहीं भीतर, कुछ गहरे में
इस शांत समंदर में, शायेद कुछ बदला सा है!!
इस शांत समंदर में, शायेद कुछ बदला सा है!!
Tuesday 21 June 2011
मौन!!
तुम्हारी चीख ,द्वन्द, कोलाहल
मेरी चीख ,द्वन्द ,कोलाहल
बैठे हम पास मौन !!!!
मेरी चीख ,द्वन्द ,कोलाहल
बैठे हम पास मौन !!!!
बँटवारा कमरों का
बँटवारा दिलों का
आँगन का बूढ़ा पेड़ मौन !!
बँटवारा दिलों का
आँगन का बूढ़ा पेड़ मौन !!
प्रयत्न मेरा
प्रयत्न तुम्हारा
बंद दिल के दरवाजे मौन!!
प्रयत्न तुम्हारा
बंद दिल के दरवाजे मौन!!
हँसते ठहाके
फैलता व्यापार
दरवाजे पर पड़ी चप्पलें मौन !!!
बढते रिश्तें
पनपती कोपलें
सिकुड़ता जड़ मौन!!
पनपती कोपलें
सिकुड़ता जड़ मौन!!
तुम्हारा साथ ,उसका साथ
सबका साथ
मै अकेली मौन !!!
सबका साथ
मै अकेली मौन !!!
जाती पूरी
धर्म पूरा
अधूरी इंसानियत मौन !!
धर्म पूरा
अधूरी इंसानियत मौन !!
तुम जान पाती !!
यह अविव्यक्ति एक लड़की पर लिखा है जिन्होंने आज के दिन पिछले साल आत्महत्या कर ली थी और बोहुत मर्माहत वाली घटना थी
कभी कभी अभिभावक अपने बच्चो को समझ नही पाते हैं और पूरी ज़िन्दगी पछताते हैं !! चाहे कारण कितना भी गंभीर हो ज़िन्दगी से बढकर कुछ भी नही !!
तुम जान पाती !!
मुस्कुराते हुए चेहरे के पीछे छिपे
अन्धकार की सीमा तुम जान पाती!!
तुमलोगों की बातों में मेरे व्यतित्व
के विश्लेषण का दर्द जान पाती !!
मेरी टहनियां कहीं भी विकसित हो
परन्तु जो जड़ तुमसे जुड़ा है उसके
बंज़र हो जाने का दर्द तुम जान पाती!!
मै तो रीत रिवाज़ रूढ़ियाँ मान भी लूँ
पर आत्मा ये दकियानूसी विचार नही मानते
उस आत्मा का दर्द तुम जान पाती !!
हारना मै चाहती नही पर जहाँ जीत का
प्रावधान न हो वहां दौड़ का दर्द
तुम जान पाती ……………………!!
पल में हज़ार शब्दों का व्यापार करने वाली मै
तुम्हारे लाख शब्दों पर मेरी एक चुप्पी
का दर्द तुम जान पाती………………….!!
तुम्हारे शब्दों का संबल ही मेरी जड़ों को
सिंचित कर देते मेरे अन्धकार अपनी सीमा
ढूंढ़ लेते पर शब्दों का संबल भी
न पाने का दर्द तुम जान पाती ………..!!
”मै निर्मोही ”
जब जब मेरे शब्दों ने ,
वाक्यों के अस्तित्व में
अपनी आखरी साँसे ली
तब तब पन्ने का सफ़ेद दामन
काली स्याही ने दागदार किया
शब्दों के अदृश्य घोड़े दौड़ते गये,
हर क्षण पंक्क्तियाँ मरती गयी
इस पंक्तियाँ से उस पंक्तियाँ
अपने अस्तित्व बचाने को दौडती गयी
लिखती गयी; खुद के बिखर जाने का दर्द
”मै निर्मोही” न समझ सकी
अब थक कर बैठी हूँ तो देखती हूँ
पन्ने का पूरा अस्तित्व ही काला है
पन्ने ने अपना अस्तित्व खो कर
शब्दों को अस्तित्व दिया है ;पर
”मै निर्मोही ” ही रही
वाक्यों के अस्तित्व में
अपनी आखरी साँसे ली
तब तब पन्ने का सफ़ेद दामन
काली स्याही ने दागदार किया
शब्दों के अदृश्य घोड़े दौड़ते गये,
हर क्षण पंक्क्तियाँ मरती गयी
इस पंक्तियाँ से उस पंक्तियाँ
अपने अस्तित्व बचाने को दौडती गयी
लिखती गयी; खुद के बिखर जाने का दर्द
”मै निर्मोही” न समझ सकी
अब थक कर बैठी हूँ तो देखती हूँ
पन्ने का पूरा अस्तित्व ही काला है
पन्ने ने अपना अस्तित्व खो कर
शब्दों को अस्तित्व दिया है ;पर
”मै निर्मोही ” ही रही
Tuesday 22 March 2011
ओह ..........
सच कहूँ! तो तुम्हारी यादों को मैंने अपना ग्राह्य बना लिया है ,
वर्ना मन में पड़ी यादें मुझे अपना ग्राह्य बना लेती हैं
ओह ! कितना याद आते हो तुम !!
सोचा था सारी यादें पी जाओंगी,परन्तु
पीने से ये यादें भीतर खौलने लगती हैं
और मै पिघलने लगती हूँ
लोग जान जाते हैं
यादों से ही बनी हूँ मै !!
यादें तो कितने सालों से पीछा कर रही हैं
उस साल की यादें ,इस साल की यादें
कितने सालों की यादें ,हर साल की ..
ओह ! कितना याद आते हो तुम !!
यादों को तो ठोक दिया है तुमने इशु की तरह
इसलिए जिस्म टंगा रह जाता है हर साल
और जिस्म सर्द होकर भी ,
आँखें चुगली कर जाती हैं
ओह .......
रोज़ थोड़ी २ जलती हूँ मै!
और थोड़ी २ यादें भी जला डालती हूँ
पर क्या करु ये गिरी राख भी यादें बन जाती हैं
लोग जो भ्रमित थे मेरे रोशन जहाँ देखकर
अब तुम्हे बेवफा मानते हैं आँखों की नमी देखकर
अब इन्हें कैसे समझाऊं यादें भी तो रंग बदल लेती हैं
ओह......
हर साल की तरह इस साल भी
सारी यादें गाड़ दूंगी कही भीतर
अब पलकों की बाड़ से नही बरसेंगी ये यादें
क्यूंकि अगर बरसी तो तुम्हे आना होगा
इन यादों और ज़माने को ज़बाब देना होगा !!
क्यूंकि!! अब भीतर न तो ज़मी बची है
ज़हां ये यादें गाड़ सकूँ
और पलकें भी अब बंजर हो चली हैं !!
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