सच कहूँ! तो तुम्हारी यादों को मैंने अपना ग्राह्य बना लिया है ,
वर्ना मन में पड़ी यादें मुझे अपना ग्राह्य बना लेती हैं
ओह ! कितना याद आते हो तुम !!
सोचा था सारी यादें पी जाओंगी,परन्तु
पीने से ये यादें भीतर खौलने लगती हैं
और मै पिघलने लगती हूँ
लोग जान जाते हैं
यादों से ही बनी हूँ मै !!
यादें तो कितने सालों से पीछा कर रही हैं
उस साल की यादें ,इस साल की यादें
कितने सालों की यादें ,हर साल की ..
ओह ! कितना याद आते हो तुम !!
यादों को तो ठोक दिया है तुमने इशु की तरह
इसलिए जिस्म टंगा रह जाता है हर साल
और जिस्म सर्द होकर भी ,
आँखें चुगली कर जाती हैं
ओह .......
रोज़ थोड़ी २ जलती हूँ मै!
और थोड़ी २ यादें भी जला डालती हूँ
पर क्या करु ये गिरी राख भी यादें बन जाती हैं
लोग जो भ्रमित थे मेरे रोशन जहाँ देखकर
अब तुम्हे बेवफा मानते हैं आँखों की नमी देखकर
अब इन्हें कैसे समझाऊं यादें भी तो रंग बदल लेती हैं
ओह......
हर साल की तरह इस साल भी
सारी यादें गाड़ दूंगी कही भीतर
अब पलकों की बाड़ से नही बरसेंगी ये यादें
क्यूंकि अगर बरसी तो तुम्हे आना होगा
इन यादों और ज़माने को ज़बाब देना होगा !!
क्यूंकि!! अब भीतर न तो ज़मी बची है
ज़हां ये यादें गाड़ सकूँ
और पलकें भी अब बंजर हो चली हैं !!