दरकती रही ज़िन्दगी जुड़ने की चाहत में
उगते रहे ये पंख बस उड़ने की चाहत में !
उगते रहे ये पंख बस उड़ने की चाहत में !
पलकें जब भी उठाई अपने ही चेहरे से घबराई
दौडती रही रौशनी में बस अंधेरों से टकराई !
दौडती रही रौशनी में बस अंधेरों से टकराई !
मुस्कुराते कई शब्द ! ख़ामोशी में बदल रहे
भावनाओं के किरदार एकाकीपन में उलझ रहे
भावनाओं के किरदार एकाकीपन में उलझ रहे
मै बैठी रह जाती हूँ, विचार आगे बढ़ जाते हैं
मै कुछ न कह पाती हूँ , मौन सब कह जाते हैं
मै कुछ न कह पाती हूँ , मौन सब कह जाते हैं
उथल पुथल हुई है कहीं भीतर, कुछ गहरे में
इस शांत समंदर में, शायेद कुछ बदला सा है!!
इस शांत समंदर में, शायेद कुछ बदला सा है!!
sundr ,bdhai nirntr abhys poorvk likhtirhe ridm ke liye prishrm kren
ReplyDeletedr. ved vyathit
09868842688