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Friday 8 June 2012

मैं सामाजिक हूँ

                                                                       मैं  सामाजिक हूँ


    मुझे ख़ुशी है मैं बोहुत से लोंगों को नहीं जानती ...............

   जो मुझे नहीं जानते उनके लिए मैं सामाजिक हूँ...........

   और जो जानते हैं उनके लिए सामाजिक होने का बस ढोंग करती हूँ !!



   लोग कहते हैं मेरे अंदर बोहुत संवेदनाएं हैं ,परन्तु जब भी

   व्याभारिकता की बात हुई   संवेदनाओं का रुख बदल गया

   तो संवेदनशील तो नहीं हुई ना ............


   बोहुतों ने कहा मैं सोच में परे हूँ

   रूढ़ियाँ  परंपराएं एवम सामाजिक सरोकार  में

   मैंने भी अपनी सहमति  लगाई तो सोच से परे कैसे ........


   सबने कहा मैं अलग  हूँ

   मेरे यह कहनेभर से की मेरे विचार आप से सहमत नहीं

   तो मैं अलग तो नहीं ना, महज सोच भर से दुनिया नहीं बदली जाती ...

   मगर सोच से बदलाव के विचार तो आते हैं ना .................


   किसी ने कहा पन्नों को रंगना छोड़ दो

   कैसे कहूँ शब्दों से मैं रंगी जा रही हूँ

   बोहुतों ने पूछा प्रेम के   विषय में क्या विचार है ?

   मैंने कहा मै एक सामाजिक प्राणी हूँ, और समाज के नियमों का पालन करती हूँ ....

 
    आस्था पर मेरे विचार जानने वाले भी बोहुत हैं

    आस्था मेरे भीतर का भय और वास्त्विकता मात्र इतनी है

     की मैं बोहुत भयवीत  होती हूँ अपने तरह के सामाजिक प्राणी से .........

   
    लोगों ने कहा मैं शब्दहीन हूँ

    वास्तविकता  ये है की मेरे  हैं शब्द  अर्थहीन हैं

    इस समाज के लिए  अथ मैं शब्दहीन हूँ..........