pallawi
roses
Monday 3 July 2017
Thursday 16 April 2015
तुम तक
तुम तक ही तो थी मैं ..
बांकी सब तो स्वार्थ था
इसलिये हृदयहीन हूँ सबों के लिये
सिवाय तुम्हारे ……
सच के टुकड़े हुए, तुम चली गयी
अब ! पॉव तले मिट्टी ना रही
सो कंकड़ चुभते है कही भीतर ..
खड़ी हूँ।.,क्यूंकि।..
सच्चाई सामने आई नहीं
ओर मौत झूट होती नहीं।.
टुकुर टुकुर देखती हूँ स्याह काली रात को
लोग कहते हैं तुमने दुनियाँ बदल ली है !
Wednesday 11 September 2013
Friday 8 June 2012
मैं सामाजिक हूँ
मैं सामाजिक हूँ
मुझे ख़ुशी है मैं बोहुत से लोंगों को नहीं जानती ...............
जो मुझे नहीं जानते उनके लिए मैं सामाजिक हूँ...........
और जो जानते हैं उनके लिए सामाजिक होने का बस ढोंग करती हूँ !!
लोग कहते हैं मेरे अंदर बोहुत संवेदनाएं हैं ,परन्तु जब भी
व्याभारिकता की बात हुई संवेदनाओं का रुख बदल गया
तो संवेदनशील तो नहीं हुई ना ............
बोहुतों ने कहा मैं सोच में परे हूँ
रूढ़ियाँ परंपराएं एवम सामाजिक सरोकार में
मैंने भी अपनी सहमति लगाई तो सोच से परे कैसे ........
सबने कहा मैं अलग हूँ
मेरे यह कहनेभर से की मेरे विचार आप से सहमत नहीं
तो मैं अलग तो नहीं ना, महज सोच भर से दुनिया नहीं बदली जाती ...
मगर सोच से बदलाव के विचार तो आते हैं ना .................
किसी ने कहा पन्नों को रंगना छोड़ दो
कैसे कहूँ शब्दों से मैं रंगी जा रही हूँ
बोहुतों ने पूछा प्रेम के विषय में क्या विचार है ?
मैंने कहा मै एक सामाजिक प्राणी हूँ, और समाज के नियमों का पालन करती हूँ ....
आस्था पर मेरे विचार जानने वाले भी बोहुत हैं
आस्था मेरे भीतर का भय और वास्त्विकता मात्र इतनी है
की मैं बोहुत भयवीत होती हूँ अपने तरह के सामाजिक प्राणी से .........
लोगों ने कहा मैं शब्दहीन हूँ
वास्तविकता ये है की मेरे हैं शब्द अर्थहीन हैं
इस समाज के लिए अथ मैं शब्दहीन हूँ..........
मुझे ख़ुशी है मैं बोहुत से लोंगों को नहीं जानती ...............
जो मुझे नहीं जानते उनके लिए मैं सामाजिक हूँ...........
और जो जानते हैं उनके लिए सामाजिक होने का बस ढोंग करती हूँ !!
लोग कहते हैं मेरे अंदर बोहुत संवेदनाएं हैं ,परन्तु जब भी
व्याभारिकता की बात हुई संवेदनाओं का रुख बदल गया
तो संवेदनशील तो नहीं हुई ना ............
बोहुतों ने कहा मैं सोच में परे हूँ
रूढ़ियाँ परंपराएं एवम सामाजिक सरोकार में
मैंने भी अपनी सहमति लगाई तो सोच से परे कैसे ........
सबने कहा मैं अलग हूँ
मेरे यह कहनेभर से की मेरे विचार आप से सहमत नहीं
तो मैं अलग तो नहीं ना, महज सोच भर से दुनिया नहीं बदली जाती ...
मगर सोच से बदलाव के विचार तो आते हैं ना .................
किसी ने कहा पन्नों को रंगना छोड़ दो
कैसे कहूँ शब्दों से मैं रंगी जा रही हूँ
बोहुतों ने पूछा प्रेम के विषय में क्या विचार है ?
मैंने कहा मै एक सामाजिक प्राणी हूँ, और समाज के नियमों का पालन करती हूँ ....
आस्था पर मेरे विचार जानने वाले भी बोहुत हैं
आस्था मेरे भीतर का भय और वास्त्विकता मात्र इतनी है
की मैं बोहुत भयवीत होती हूँ अपने तरह के सामाजिक प्राणी से .........
लोगों ने कहा मैं शब्दहीन हूँ
वास्तविकता ये है की मेरे हैं शब्द अर्थहीन हैं
इस समाज के लिए अथ मैं शब्दहीन हूँ..........
Saturday 3 December 2011
Sunday 7 August 2011
कुछ बदला सा !!
दरकती रही ज़िन्दगी जुड़ने की चाहत में
उगते रहे ये पंख बस उड़ने की चाहत में !
उगते रहे ये पंख बस उड़ने की चाहत में !
पलकें जब भी उठाई अपने ही चेहरे से घबराई
दौडती रही रौशनी में बस अंधेरों से टकराई !
दौडती रही रौशनी में बस अंधेरों से टकराई !
मुस्कुराते कई शब्द ! ख़ामोशी में बदल रहे
भावनाओं के किरदार एकाकीपन में उलझ रहे
भावनाओं के किरदार एकाकीपन में उलझ रहे
मै बैठी रह जाती हूँ, विचार आगे बढ़ जाते हैं
मै कुछ न कह पाती हूँ , मौन सब कह जाते हैं
मै कुछ न कह पाती हूँ , मौन सब कह जाते हैं
उथल पुथल हुई है कहीं भीतर, कुछ गहरे में
इस शांत समंदर में, शायेद कुछ बदला सा है!!
इस शांत समंदर में, शायेद कुछ बदला सा है!!
Tuesday 21 June 2011
मौन!!
तुम्हारी चीख ,द्वन्द, कोलाहल
मेरी चीख ,द्वन्द ,कोलाहल
बैठे हम पास मौन !!!!
मेरी चीख ,द्वन्द ,कोलाहल
बैठे हम पास मौन !!!!
बँटवारा कमरों का
बँटवारा दिलों का
आँगन का बूढ़ा पेड़ मौन !!
बँटवारा दिलों का
आँगन का बूढ़ा पेड़ मौन !!
प्रयत्न मेरा
प्रयत्न तुम्हारा
बंद दिल के दरवाजे मौन!!
प्रयत्न तुम्हारा
बंद दिल के दरवाजे मौन!!
हँसते ठहाके
फैलता व्यापार
दरवाजे पर पड़ी चप्पलें मौन !!!
बढते रिश्तें
पनपती कोपलें
सिकुड़ता जड़ मौन!!
पनपती कोपलें
सिकुड़ता जड़ मौन!!
तुम्हारा साथ ,उसका साथ
सबका साथ
मै अकेली मौन !!!
सबका साथ
मै अकेली मौन !!!
जाती पूरी
धर्म पूरा
अधूरी इंसानियत मौन !!
धर्म पूरा
अधूरी इंसानियत मौन !!
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