शब्दों की धूप ज़डो से जुड़ी मैं अर्थहीन संवाद….
देहरी पर खड़ी मैं उम्मीदों का अथाह सागर संकरी गली…. तेज़ बरसात भीगती मैं सूखी ज़मीन…
बदलाहट की आहट
नया घर......
पुरानी मै
चलो तलाशते हैं रूठी तक़दीर को भाग्यहीन…
कौन भगा है? अपने आप से हृदयहीन…
क्या कहूँ शब्द यूं बेवज़ह बोलते नहीं…