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Thursday 28 October 2010

आबरू

            दो आँसूं इधर लुढके थे एक चीख उधर गूंजी थी
            फिर इज्जत  के रखवालों ने, आबरू किसी की लूटी थी !!
          
            सीसे सा दिल पत्थर में  बदल गया
            अपराधियों के कोर्ट में, गवाह फिर मुकर गया  !!

            वो बेवफा, सामने खड़ा खिल्लियाँ उड़ा रहा
            बदचलनी के कितने ही, इल्जाम वो लगा रहा !!

            छिप गयी दरवाजे के पीछे बेआवाज रो रही
            जिंदगी से भली मौत उसको लग रही !!

Saturday 20 March 2010

”मैं ”आप” और "परिवर्तन”

  हाँ , मै प्रारंभ में सीधी और सरल थी
'आपने' मेरी सरलता का गलत उपयोग किया
शब्दों  के जोर पर सहमने वाली मै'' चालाक और चतुर हो'' गयी
आपका तो पता नहीं पर खुद को छलने  लगी
खुद को ठगे जाने के दर्द ने मुझे ''भाबुक'' बना दिया
फिर आपने मेरी भावनाओं  से हर पल खेला
मेरी भावनाएं  फिर मरती गयी
मैंने भावानाओं को ''व्यभारिकता '' का आवरण दे दिया
फिर आपने शब्दों  के बरछे  से आवरण छलली कर दी
मै फिर अव्यवस्थित  हो गयी
पर आज मै चट्टान हूँ
यहाँ प्रहारों का कोई अर्थ नहीं
एक सर्द चट्टान हूँ
आपके शब्द भी मुझे तोड़  नहीं सकते



नोट - यहाँ ''आप '' समाज है

Wednesday 10 March 2010

मै निर्मोही ''

जब जब मेरे  शब्दों  ने ,

        वाक्यों के अस्तित्व  में अपनी आखरी साँसे ली
तब तब पन्ने का सफ़ेद
      दामन काली स्याही ने  दागदार किया
 शब्दों  के अदृश्य घोड़े दौरते गये,
        हर छन पंक्तिया मरती गयी
इन पंक्तियाँ  से उस पंक्तियाँ
       अपने अस्तित्व बचाने को दौडती  गयी
लिखती गयी; खुद के बिखर जाने का दर्द
          ''मै निर्मोही'' न समझ सकी
 अब थक कर बैठी हु तो देखती हु
          पन्ने का पूरा अस्तित्व ही काला है
   पन्ने ने अपना अस्तित्व को खो कर
          शब्दों  को अस्तित्व दिया है ;पर
''                              मै निर्मोही '' ही रही

Saturday 6 March 2010

तुम क्यों चली गयी

achanak se dher saare patte zamin pr aa gire mai saham gyi ,
tum chali gyi per apni baat chod gyi,
her subah tumhare hone ka ehsaas dhundti hu,
humari bak bak k bich tumhari khamoshi dhundti hu,
raat ki khamoshi me kabhi chupchap fusfusaate hue kiye hue her baat dhundti hu,
aaj v kitaabon ki aalmaari me tumhare padchap dhundti hu,
nahi bant sakti jo us bachpan k her jajbaat dhundti hu,
muskuraate hue saam ka gujar jaana,
her dopehar chay k liye chillana,
kya batau saath bitaye hue lamho ki barsaat dhunti hu
TUM hamare saath ho hum sab saath hain
pr phir v saath JINE ke ehsaas dhundti hu