तुम तक ही तो थी मैं ..
बांकी सब तो स्वार्थ था
इसलिये हृदयहीन हूँ सबों के लिये
सिवाय तुम्हारे ……
सच के टुकड़े हुए, तुम चली गयी
अब ! पॉव तले मिट्टी ना रही
सो कंकड़ चुभते है कही भीतर ..
खड़ी हूँ।.,क्यूंकि।..
सच्चाई सामने आई नहीं
ओर मौत झूट होती नहीं।.
टुकुर टुकुर देखती हूँ स्याह काली रात को
लोग कहते हैं तुमने दुनियाँ बदल ली है !