यह अविव्यक्ति एक लड़की पर लिखा है जिन्होंने आज के दिन पिछले साल आत्महत्या कर ली थी और बोहुत मर्माहत वाली घटना थी
कभी कभी अभिभावक अपने बच्चो को समझ नही पाते हैं और पूरी ज़िन्दगी पछताते हैं !! चाहे कारण कितना भी गंभीर हो ज़िन्दगी से बढकर कुछ भी नही !!
तुम जान पाती !!
मुस्कुराते हुए चेहरे के पीछे छिपे
अन्धकार की सीमा तुम जान पाती!!
तुमलोगों की बातों में मेरे व्यतित्व
के विश्लेषण का दर्द जान पाती !!
मेरी टहनियां कहीं भी विकसित हो
परन्तु जो जड़ तुमसे जुड़ा है उसके
बंज़र हो जाने का दर्द तुम जान पाती!!
मै तो रीत रिवाज़ रूढ़ियाँ मान भी लूँ
पर आत्मा ये दकियानूसी विचार नही मानते
उस आत्मा का दर्द तुम जान पाती !!
हारना मै चाहती नही पर जहाँ जीत का
प्रावधान न हो वहां दौड़ का दर्द
तुम जान पाती ……………………!!
पल में हज़ार शब्दों का व्यापार करने वाली मै
तुम्हारे लाख शब्दों पर मेरी एक चुप्पी
का दर्द तुम जान पाती………………….!!
तुम्हारे शब्दों का संबल ही मेरी जड़ों को
सिंचित कर देते मेरे अन्धकार अपनी सीमा
ढूंढ़ लेते पर शब्दों का संबल भी
न पाने का दर्द तुम जान पाती ………..!!
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